2.5 stars
दोस्तों, कूली मूवी देखने के बाद आपको मिर्ज़ापुर का वो डायलॉग याद आ जाएगा कि क्या हर बार गरम करके ठंडा ही छोड़ देते हो। इसलिए नहीं कि फिल्म ख़राब है लेकिन इसलिए क्योंकि इसके ट्रेलर, पोस्टर्स और मार्केटिंग ने अलग लेवल की हाइप क्रिएट कर दी थी जिस पर ये फिल्म खरी नहीं उतरती। आमिर खान का रोल तो फिल्म में उनकी हाइट से भी ज़्यादा छोटा है और वो फिल्म की कहानी में उतना ही सेंस बनाता है जितना उनकी लाल सिंह चड्ढा और ठग्स ऑफ़ हिंदोस्तान जैसी फ़िल्में। मेकर्स ने फिल्म की स्टोरी पर कम और रजनीकांत के एक्शन, स्टाइल, एंट्री वगैरह पर ज़्यादा मेहनत की है जो कि हीरो वर्शिपिंग जैसा लगता है। फिल्म में इतने सारे लंबे-लंबे इरिटेटिंग गाने हैं कि फिल्म देखकर आपकी गांड (बीप) फटे न फटे, कान फटने तय हैं। तो अगर आपको रजनीकांत पसंद है या आपको बस एक साउथ की एंटरटेनिंग मसाला फिल्म देखनी है तो आप ये फिल्म देखने जा सकते हैं। लेकिन अगर आप इस फिल्म से विक्रम फिल्म जैसा कुछ एक्सपेक्ट कर रहे हैं तो आपका भी हाल वही होने वाला है जो सैयारा देखने के बाद निब्बा-निब्बियों का हुआ था।