गत दिसम्बर राजस्थान में महारानी की खेर नहीं नारे की वजह से ऐसा परिवर्तन आया की लोगों को 60 70 के दशक की याद दिला दी जब बिजली ख़ुद लोगों के घर पाँच दस मिनट के लिए परिवार के सदस्यों की खेरियत जानने आती थी।
बिलकुल वहीं सीन आजकल राजस्थान में देखने को मिल रहा है, विधुत सप्लाई दिन में इतनी ही देर होती है अगर बंदा ख़ुशी में चिल्लाए ‘आ गयीइइइइइ’ उससे पहले लाइट जा चुकी होती हैं। इसी दरम्यान राजस्थान के जोधपुर जिले में एक घटना हुई जो काफ़ी क़ोतूहल भरी हैं।
भयंकर गर्मी से त्रस्त एक इंजीनियरिंग का छात्र रात में घर के बाहर कम कपड़ों में बैठा था और लाइट आने के इंतज़ार में था, सामने से गुज़र रहे राहगीरों ने भिखारी समझ पैसे डालना शुरू कर दिया। अंधेरे में पहचान न करने के कारण उन्मे इस बात की बहस भी हो गयी की हट्टे क़ट्टे नौजवान है इनको मेहनत की खानी चाहिए।
इंजीनियरिंग के छात्र से फ़ौक्सी की हुई बातचीत में उसने कहा की मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा वो लोग पेसे डालकर गये है, हमारे तो सुट्टे पानी का जुगाड़ ही हुआ है, अब से रोज़ रात को बाहर बेठूँगा जो मिलेगा लपेट लेंगे।
हमारी बस सरकार से प्रार्थना है की जब भी बिजली दे तो लोगों को पहले सूचित करदे की आज बिजली आने वाली है वरना अचानक से बिजली देख लोगों को हार्ट अटेक के दौरे ना पड़ जाए, क्योंकि हालात ये है की अगर बारिश होने पर लोगों को बोला जाए बिजली गिर सकती है अंदर चले जाओ तो हो सकता है वो बिजली देखने वहीं खड़े रहे।