फैज़ को ना पढ़ने वाले नफ़रत के सौदागर एक बार फिर अपने मंसूबों में कामयाब रहे हैं। आइडिया ऑफ इण्डिया का ख्वाब एक बार फिर इण्डिया के हालात पर आँसू बहा रहा है। ईद के दिन जोधपुर में जो कुछ भी हुआ, उसे छाप कर समाज में नफरत फ़ैलाने में हिंदी मीडिया और अखबारों ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। इस बात का भी ख़याल नहीं रखा गया कि जब टोपी पहने कुछ शांतिप्रिय लोग पुलिस पर लाठी मार ही चुके हैं तो अब इस पर बात करने या इस पर चर्चा करने से अब वो लाठी का दर्द मिट तो नहीं जाएगा।
सर पर मेले से खरीदी हुई विग लगाए हुए मीलॉर्ड नाम के एक स्थानीय हलवाई की मानें तो जोधपुर में ईद के मुक़द्दस त्यौहार पर ये सिर्फ एक छोटा मोटा शांतिप्रिय दंगा था। ग्राउंड रिपोर्ट के लिए मौके पर मौजूद हमारे फैक्ट चेकर्स के सचल दस्ते ने हमें इस पूरी घटना की बारे में जानकारी दी।
व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के प्रधान कुलपति छेनू कुमार पाण्डेय ने अपने प्राइम टाइम में दो मिनट का मौन रखने के बाद इस पूरी घटना पर विस्तार से रवीश रोना मचाया। उन्होंने कहा कि 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद आज हम एक राष्ट्र के तौर पर भी हार गए हैं।
बकौल छेनू कुमार पाण्डेय, हिंदी अख़बारों से नेहरू के भारत में क़ौमी एकता ख़तरे में है। उन्होंने कहा कि एक आम राह चलते आदमी को टोपी पहना दी गई, उसके हाथ में डंडा दे दिया गया, उसके आगे फोटोशॉप कर एक पुलिसकर्मी को खड़ा कर दिया गया और अगली सुबह ये तस्वीर सभी हिंदी अखबारों के पहले पन्ने पर छाप दी गई।
उन्होंने बताया कि किस तरह से अरविन्द केजरीवाल के पहले पन्ने पर छपने वाले विज्ञापनों से समाज में नफरत फैलने से बची हुई थी। छेनू पाण्डेय ने कहा कि पुलिस पर पड़ रहे जिस डंडे को आज अख़बारों में छापा गया है, वो एक मनुवादी किसान के खेत से लाया गया डंडा था। हालाँकि, वो ये कहना नहीं भूले कि डंडे की कोई जात नहीं थी।
वहीं, पत्थर को बटुआ साबित करने का कारनामा करने वाले हमारे एक तेजस्वी फैक्ट चेकर एवं पार्ट टाइम आईएस के एक सर्वहारा श्रमिक ने फैक्ट चेक करते हुए बताया कि पुलिस पर पड़ते इस डंडे को साम्प्रदायिक रंग देने का प्रयास किया गया है।
फैक्ट चेकर अब्दुल ने बताया कि जब उन्होंने इस डंडे की हकीकत पता करने के लिए इस डंडे को रिवर्स इमेज सर्च में डाला तो ये डंडा आरएसएस के कार्यकर्ताओं का डंडा निकला। अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए अब्दुल ने बताया कि पुलिस पर डंडा मार रहे इस टोपी पहने युवक और इस तस्वीर के पीछे की वास्तविक कहानी गोदी मीडिया ने भी सभी से छुपाई है।
असल में, ये मुस्लिम युवक नेहरु के सपनों के भारत में चल रही कड़ाके की हीट वेव के बीच जोधपुर के एक आम चौराहे पर गर्मी में तपते एक हिंदू पुलिसकर्मी को गन्ना दे रहा था। यकीन गोदी मीडिया ने इस तस्वीर को साम्प्रदायिक रंग देते हुए बताया कि ये ईद के दिन काफिरों को सबक सिखाने निकला एक मजहब विशेष का रैंडम अब्दुल है।
फैक्ट चेकर अब्दुल ने जब इस डंडे की सत्यता की पुष्टि के लिए उस डंडे को गन्ने का रस निकालने वाली मशीन में डाला तो उस से ‘पंचर पुत्रम कभी न मित्रम’ जैसी जोर की आवाजें आई। अब्दुल ने कहा कि सोशल मीडिया पर चल रही भड़काऊ एवं भ्रामक सामग्री ने आरएसएस के डंडों को भी किस स्तर तक रेडिकलाइज कर दिया है, ये इस बात का प्रमाण है।
हमारे ख़ुफ़िया सूत्रों ने हमें ये भी बताया कि तस्वीर में दिख रहा ये युवक आगे चल कर फैक्ट चेकर बनना चाहता था और इसी कारण उसका शोषण किया जा रह है। जब हमने इसी विषय पर अपने वरिष्ठ यूट्यूबर अतिसार शर्मा से डंडे और टोपी की कहानी पर विशेषज्ञ राय लेने का प्रयास किया तो उन्होंने हमें बताया कितस्वीर में युवक के हाथों में दिख रहा डंडा असल में डंडा नहीं बल्कि लकड़ी है, जो किसानों के काम गेहूं से धान निकालने में आती है।
वरिष्ठ पत्रकार इकतरफा जानम ने अपनी विशेषज्ञ टिप्पणी देते कहा कि इस डंडे को फ़ोटोशॉप के माध्यम से बड़ा कर दिया गया है, जबकि ये इतना भी बड़ा नहीं था, उन्होंने कहा कि आजकल तकनीक के जरिए कुछ कुत्सित मानसिकता के लोग हर छोटी चीज को बड़ा बना देते हैं।