सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर वैसा ही है जैसे सरकारी अस्पतालों में इलाज का।
सरकारी अस्पताल की ओपीडी में डॉक्टर और सरकारी स्कूल की कक्षा में अध्यापक की मौजूदगी वैसे ही है जैसे किसी सस्ते पान मसाला में इलायची, पैकेट में लिखा है पर अंदर है नही।
सरकारी स्कुल के अध्यापक डॉक्टर्स के जैसे ही प्राइवेट प्रैटिक्स पर ज्यादा ध्यान देते है, अगर कोई छात्र या छात्रा अपने कक्षाध्यापक ने प्राइवेट ट्यूशन नही लेता तो उसका परीक्षा में पास होना मुश्किल ही नही नामुमकिन है।
राजस्थान के जोधपुर के एक सरकारी स्कूल में अध्यापक लालिया सिंह ने जब छात्रों को बिना किसी प्राइवेट कोचिंग के अपनी कक्षा में ही पढ़ाना आरम्भ कर दिया तो वहाँ के सारे अध्यापक चौंक उठे, उन्होंने प्रधानाध्यापक गौरांग से इसकी शिकायत की और इसे नियमों के ख़िलाफ़ बताया। गौरांग जो खुद कला के अध्यापक होने के बावजूद कोचिंग में छात्रों को विज्ञान पढ़ाते थे सिर्फ प्रिंसिपल होने के कारण उन्हें भी मामले की गम्भीरता समझ में आई और लालिया सिंह को समझाया कि ऐसे तो सारे सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को अपनी क्लास में पढ़ना पड़ेगा।
उसूलों के पक्के लालिया ने जब विरोध किया तो कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।